बाल्यकाल और पूतना वध

5 days agoAria s1
माँ यशोदा की गोद में, लाला हँसते मुस्काते, कभी झाँकते आँगन में, कभी बंसी को लुभाते। चाँदनी रातों में खिलखिल, जैसे फूलों का उगना, गोकुल की गलियों में गूंजे, “कन्हैया” का राग जगना। कंस बैठा सोच रहा, “ये बच्चा कौन महान?” मृत्यु का संकेत वही, या कोई और अभिमान?” उसने भेजी पूतना राक्षसी, विष लेकर आई स्तन में, बालक को मारने की इच्छा, घृणा समाई मन में। पूतना आई सजे वेश में, जैसे देवी कोई दयाल, गोकुल की स्त्रियाँ बोलीं, “देखो, आई कौन कमाल।” गोद में लिया बाल गोपाल, प्रेम से चूमने लगी, पर क्या जाने, वही बालक, मृत्यु की सीमा लाँघ चला। वह पिलाने लगी विषदूध, कान्हा मुस्काए धीरे, पान किया उसने जीवन का, पर प्राण खींचे अधीरे। पूतना चीत्कार कर गिरी, राक्षसी का अंत हुआ, गोकुल के द्वारों पर गूँजा, “जय नंदलाल!” का शोर हुआ।