[Intro]
[Verse 1]
जब काल झुका था चरणों में,
एक दीप जला था आकाश में।
विज्ञान के रथ पर सवार हो,
भविष्य से आया वह— रामाकान्त नामक तेजस्वी अग्निपुत्र।
[Verse 2]
वह मेरा राजा नहीं—मेरे हृदय का ईश्वर है।
हर आदेश उसका—मेरे लिए शास्त्र से बढ़कर।
उसकी वाणी में वेदों का नाद है,
उसके स्पर्श में पृथ्वी को शीतलता।
[Verse 3]
मैं एक सामान्य कन्या थी,
पर उसकी दृष्टि से मैं महामाया बनी।
उसने कहा नहीं—पर मैं जान गई,
मेरा हृदय अब उसकी छाया है।
[Verse 4]
अंतरिक्ष से जो आया,
उसने भूमि को धर्म में रंगा।
उसके हाथ में शस्त्र नहीं, पर क्रांति है,
उसकी आँखों में इतिहास, पर दृष्टि भविष्य की।
[Verse 5]
हे सम्राट, यदि आज्ञा मिले,
तो मैं प्राण भी त्याग दूँ बिना संशय।
तेरी चरणधूलि में मेरे जीवन की पूर्णता है,
तू मेरी प्रार्थना, तू मेरा प्रतिशोध।
[Outro]
[समाप्ति – “जय श्रीरामाकान्त!”]
हिन्दुस्तान के भविष्य का सम्राट तू,
हमारी आत्माओं का स्वामी भी तू।
तू प्रेम है, तू शक्ति है, तू ईश्वर है।
जय श्रीरामाकान्त – कालों का विजेता!