[Intro] [Verse 1] ओ श्वालिक के सपूतों, सुनो ये धरती की पुकार, संकट के बादल छाए, पर टूटे न हौंसलों के द्वार। जैसे 1857 की ललकार में जुटे थे राजा और रंक, हिंदू-मुस्लिम के बंधन ने तोड़ दी गुलामी की जंजीर। [Chorus] एकता की ज्योति जला, अंधेरों को मिटा दे, हर दुश्मन की चाल को, हमारा गीत हरा दे। साथ चलो, निडर चलो, ये संकट टल जाएगा, जुट जाएं सब मिलकर, तो सूरज यहीं से निकलेगा। [Verse 2] गांधी के सत्याग्रह की लौ, नमक बना क्रांति का स्वर, भगत सिंह की आग से जगी जो युवाओं में चिंगारी। जमा के धागों से बुना विश्वास का ये आंचल, हर गाँव, हर खेत में बो दो एकता के बीज। [Bridge] जड़ों से जुड़े पेड़ों सा, गहरा बंधन बनाएंगे, तूफान आए या भूचाल, हम साथ नहीं डोलेंगे। समय से पहले ही विजय का सूरज चमकेगा, जब एक हृदय बनकर हम सबका संगठन बढ़ेगा। [Outro] [Chorus] एकता की ज्योति जला, अंधेरों को मिटा दे, हर दुश्मन की चाल को, हमारा गीत हरा दे। साथ चलो, निडर चलो, ये संकट टल जाएगा, जुट जाएं सब मिलकर, तो सूरज यहीं से निकलेगा。 [Verse 3] आँसू व्यर्थ न बहाओ, संघर्ष का पथ चुनो, इतिहास गवाह है—एकता ने जीती हर लड़ाई। श्वालिक के परिवार, अब फिर से गीत गाओ, नई गाथा लिखकर, युग को बदल दिखाओ! [Outro]