जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बलधामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
राम काज करिबे को आतुर।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥